देश का ‘मन’ मौन

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देश में आर्थिक सुधारों के महानायक पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह का गुरुवार को निधन हो गया। रात 8:06 बजे उन्हें दिल्ली एम्स में भर्ती कराया गया था। यहीं, रात 9:51 पर उन्होंने अंतिम सांस ली। 92 वर्षीय डॉ. लंबे समय से अस्वस्थ थे। केंद्र सरकार ने पूर्व पीएम के निधन के बाद शुक्रवार को तय सभी कार्यक्रम रद्द सवारी कार्यक्रम रहे कर दिए। शुक्रब राष्ट्रीय शोक की औपचारिक घोषणा होगी। उनका अंतिम संस्कार राजकीय सम्मान से होगा।

डॉ. सिंह 2004 में देश के 13वें प्रधानमंत्री बने और मई 2014 तक दो टर्म इस पद पर रहे। वे देश के पहले सिख और चौथे सबसे लंबे समय तक प्रधानमंत्री रहे। निधन की सूचना के बाद कांग्रेस ने कर्नाटक में शुक्रवार को होने वाली रैली रद्द कर दी। कांग्रेस संसदीय दल की नेता सोनिया गांधी एम्स पहुंचीं।

मनमोहन का जन्म 26 सितंबर 1932 को पंजाब (अब पाकिस्तान) के चकवाल में हुआ। पंजाब विवि में प्रोफेसर के रूप में करिअर शुरू करने वाले सिंह 1991 में वित्त मंत्री बने और आर्थिक क्रांति की शुरुआत की। उनके परिवार में पत्नी गुरशरण कौर और तीन बेटियां हैं

स्मृति शेष… खुद को बड़ी कुर्सी के लिए छोटा आदमी कहते थे डॉ. मनमोहन सिंह

पंकज पचौरी, वरिष्ठ पत्रकार, 2012-14 तक पीएम के मीडिया सलाह‌कार

में डॉ. मनमोहन सिंह से 2012 में उनके सरकारी आवास 7 रेसकोर्स रोड पर मिला। बातचीत की शुरुआत में उन्होंने कहा- ‘मैं इस बड़ी कुर्सी (पीएम पद) के लिए छोटा आदमी हूं।’ करीब 28 महीने उनके साथ काम करने के दौरान मैंने उनके बारे में जैसा सुना था वैसा ही पाया… सादगी, सौम्यता और ईमानदार। आर्थिक मामलों में उनकी दूरदर्शिता का कोई मुकाबला नहीं था। आमजन के कल्याण के लिए उनकी प्रतिबद्धता सवालों से परे थी। उनका विजन वास्तविकता और आर्थिक बेहतरी पर टिका था। लाइसेंस राज खत्म कर उन्होंने भारतीय बाजार के दरवाजे विदेशी निवेश के लिए खोले। वे मानते थे कि उद्यमशीलता और नवाचार भारत की ताकत है, केवल अवसर देने की जरूरत है। कहते थे, राजनीतिक विचारधारा लोगों की भलाई के लिए होती हैं। जीडीपी के आंकड़ों से नहीं लोगों के जीवन में आए बदलाव और सामाजिक-आर्थिक न्याय से आर्थिक नीतियों की परख होती है।

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